Not known Factual Statements About naat sharif likhi hui
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naat sharif
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Whatever the change in observance, the day of Eid Milad un Nabi is per day of great value in Islam which is invested wondering, examining, or listening about his extraordinary life and teachings that hold value even several hundreds of years later on.
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Guests arriving in Saudi Arabia also are required to offer a adverse PCR COVID-19 exam taken no more than 72 hours in advance of departure and an accepted paper vaccination certificate, issued from the official well being authorities in the issuing state.
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He accustomed to capably recite Naats in Urdu, together with in numerous dialects, by way of example, Punjabi, Saraiki, Pashto, and Sindhi. The melody of his voice and the one of a kind reciting approach captivated various people and soon he had was a renowned on the net Naat khawan.
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Mashallah aap jese naat kha mene nhi suna ta .aapki voice me mere Nabi SAWW ki naat ho ya hamad ho ya manqabat ho sab mujhe ek alag Hello sukun pahuchati hai ..Allah apne Habib k sadke Zulfiqar Ali husaaini shab ko jannatul firdaus me aala se aala maqam ata kre.
जर्मनी में भारी विरोध के बावजूद पारित हुआ एंटीसेमिटिज्म प्रस्ताव
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Prophet Muhammad (peace and blessings be on him) is the final messenger of Allah Almighty, and a person of wise phrases, honesty, and mercy on all human beings. The entire humanity has long been blessed from the beginning of Prophet Muhammad and thus any day connected to his everyday living is of great significance for Muslims regardless of geographical boundaries.
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फुकुशिमा प्लांट से रोबोट ने निकाला रेडियोएक्टिव मलबा
‘रज़ा’ की शायरी ख़ाम है, बे तकफ़्फ़ुर है
नात शरीफ लिरिक्स हिंदी, नात शरीफ लिरिक्स हिंदी में, नात शरीफ लिरिक्स हिंदी में,
नूर-ए-मुहम्मद सल्लल्लाह, ला-इलाहा-इल्लल्लाह
अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर !
हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन की तस्वीर सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन का जल्वा तो सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है फूल खिलते हैं पढ़ पढ़ के सल्ले-'अला झूम कर कह रही है ये बाद-ए-सबा ऐसी ख़ुश्बू चमन के गुलों में कहाँ ! जो नबी के पसीने में मौजूद है हम ने माना कि जन्नत बहुत है हसीं छोड़ कर हम मदीना न जाएँ कहीं यूँ तो जन्नत में सब है मदीना नहीं और जन्नत मदीने में मौजूद है छोड़ना तेरा तयबा गवारा नहीं सारी दुनिया में ऐसा नज़ारा नहीं ऐसा मंज़र ज़माने में देखा नहीं जैसा मंज़र मदीने में मौजूद है ना'त-ख़्वाँ: महमूद जे.
वसल्लम अलैका या हबीब अल्लाह, अहलाओं वा सहलन मरहबा या रसूल अल्लाह।
वो कमाले हुस्ने हुज़ूर है के गुमाने नक्स जहां नहीं
●यक़ीनन वो जन्नत का हक़दार होगा, नात शरीफ हिंदी में लिखी हुई
मेरे ग़ौस की ठोकर ने मुर्दों को जिलाया है
बारगाह - ए - मुस्तुफ़ा में पेश करते हैं दुरूद।
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वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी नज़र में बसाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जो पूछा नबी ने कि कुछ घर भी छोड़ा तो सिद्दीक़-ए-अकबर के होंटों पे आया वहाँ माल-ओ-दौलत की क्या है हक़ीक़त जहाँ जाँ लुटाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जिहाद-ए-मोहब्बत की आवाज़ गूँजी कहा हन्ज़ला ने ये दुल्हन से अपनी इजाज़त अगर हो तो जाम-ए-शहादत लबों से लगाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है सितारों से ये चाँद कहता है हर-दम तुम्हें क्या बताऊँ वो टुकड़ों का 'आलम इशारे में आक़ा के इतना मज़ा था कि फिर टूट जाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो नन्हा सा असग़र, वो एड़ी रगड़ कर यही कह रहा था वो ख़ैमे में रो कर ऐ बाबा !
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है बस मेरा मुद्द'आ मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है उठ के जाऊँ कहाँ मदीने से क्या कोई दूसरा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है उस की आँखों का नूर तो देखो जिस का देखा हुवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दिल में अब कोई आरज़ू ही नहीं या मुहम्मद है या मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दुनिया वाले तो दर्द देते हैं ज़ख़्मी दिल की दवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दुनिया वाले तो दर्द देते हैं दर्द-ए-दिल की दवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है मेरे आक़ा !
बुत-ख़ानें हैं थर्राए, मेरे नबी हैं जब आए